इंजीनियर-ठेकेदारों की मिलीभगत से करोड़ों का खेल जलदाय विभाग में घटिया ट्यूबवैलों का निर्माण – ठेकेदार 18 इंच की जगह 12-14 इंच का ही बनाते हैं ट्यूबवैल – रोटरी व डीटीएच के कोम्बीनेशन की बजाए एक ही मशीन से बना देते हैं ट्यूबवैल – घटिया और कमजोर एमएस पाइप डालकर करते हैं फर्जीवाड़ा – 160
इंजीनियर-ठेकेदारों की मिलीभगत से करोड़ों का खेल
जलदाय विभाग में घटिया ट्यूबवैलों का निर्माण
– ठेकेदार 18 इंच की जगह 12-14 इंच का ही बनाते हैं ट्यूबवैल
– रोटरी व डीटीएच के कोम्बीनेशन की बजाए एक ही मशीन से बना देते हैं ट्यूबवैल
– घटिया और कमजोर एमएस पाइप डालकर करते हैं फर्जीवाड़ा
– 160 किलो की जगह 70-80 किलो के ही लगाए जाते हैं एमएस पाइप
– क्वालिटी दिखाने के लिए ऊपर का एक पाइप लगाते हैं अच्छी क्वालिटी का
– ट्यूबवैल में ग्रेवल की जगह रोड़ कंक्रीट का करते हैं उपयोग
– ठेकेदारों को चंडीगढ़ या बीकानेर से ग्रेवल मंगवाना पड़ता है महंगा
– 4 हजार रूपए टन की ग्रेवल की जगह 500 रूपए टन की रोड़ी का करते हैं उपयोग
– जबकि टेंडर शर्तों के अनुसार ट्यूबवैल में ग्रेवल का ही कर सकते हैं उपयोग
– घटिया क्वालिटी के मोटरपंप सैट और केबल का करते हैं उपयोग
– जेईएन, एईएन और एक्सईएन की मिलीभगत से हो रहा है करोड़ों का फर्जीवाड़ा
– कमीशन के लालच में इंजीनियर्स ट्यूबवैलों की क्वालिटी पर नहीं देते ध्यान
– इसलिए 2-3 साल में फेल हो रहे हैं जलदाय विभाग के ट्यूबवैल
जयपुर। जलदाय विभाग में ट्यूबवैल निर्माण में जमकर फर्जीवाड़ा हो रहा है। इंजीनियर-ठेकेदारों की मिलीभगत से चल रहे इस खेल में हर साल सैकड़ों करोड़ का घोटाला किया जा रहा है। ठेकेदारों द्वारा घटिया और कम चैड़ाई के ट्यूबवैलों का निर्माण करने के साथ ही उनमें घटिया क्वालिटी और कम वजन के एमएस पाइप डालने, ग्रेवल की जगह रोड़ी, अच्छी क्वालिटी की जगह लोकल और घटिया मोटरपंप सैट और केबल डालकर लाखों रूपए का फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। जलदाय विभाग में घटिया ट्यूबवैल निर्माण का ये खेल पूरे प्रदेश में इंजीनियर्स की मिलीभगत के चलते धडल्ले से चल रहा है। दरअसल प्रदेश में कुछ स्थानों को छोड़कर अधिकांश जगहों पर रोटरी और डीटीएच दोनों मशीनों के कोम्बीनेशन से ही अच्छी क्वालिटी के ट्यूबवैल तैयार किए जाते हैं, लेकिन जलदाय विभाग में इंजीनियर्स और ठेकेदारों की मिलीभगत के चलते कोम्बीनेशन की जगह एक ही मशीन से ट्यूबवैल का निर्माण किया जा रहा है। एक ही मशीन से ट्यूबवैल का निर्माण करने से बोर कम चैड़ाई का बनता है। जलदाय विभाग में अधिकांश ठेकेदारों द्वारा 200 एमएम के ट्यूबवैल के निर्माण में 18 इंच की जगह 12 से 14 इंच का ही बोर बनाया जाता है। इसमें 8 इंच का पाइप डालने के बाद दोनों साइड़ों में एक-दो इंच की जगह ही बचती है, जिसमें ग्रेवल डाली जाती है, ताकि पानी की आसानी से आवक हो सके। ट्यूबवैलों में पाइपों के साइड़ों में 5-5 इंच की जगह एक-दो इंच की जगह होने के कारण पानी की आवक कम होती है। दूसरा ठेकेदारों द्वारा ट्यबवैलों में पाइपों के साइड में बीकानेर या चंडीगढ़ की ग्रेवल की जगह रोड़ में काम आने वाली कंक्रीट डाली जाती है, जिससे भी पानी की आवक कम होती है। ठेकेदारों द्वारा 18 इंच की जगह 12-14 इंच की चैड़ाई का ट्यूबवैल बनाने में कई फायदे हो जाते हैं, एक तो ट्यूबवैल जल्दी और आसानी से तैयार हो जाता है, दूसरा चैड़ाई कम होने के कारण ट्यूबवैलों में कंक्रीट कम लगती है। ट्यूबवैल निर्माण के दौरान ठेकेदार द्वारा मिट्टी में पत्थर तक एमएस पाइप लगाया जाता है। यह पाइप 200 से 240 फीट की गहराई तक पत्थर पर टिकाया जाता है। ठेकेदारों द्वारा एमएस पाइप डालने में सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा किया जाता है। ट्यूबवैल निर्माण के दौरान मिट्टी में पानी की आवक वाले भाग में ठेकेदार को स्लाट वाले 2-3 पाइप डाले जाते हैं, ताकि पाइप के स्लाटों से पानी अंदर आ सके। ठेकेदार द्वारा ट्यूबवैल में कम स्लाट या बिना स्लाट वाले ही पाइप डाले जाते हैं, जिससे मिट्टी का पानी ट्यूबवैल को नहीं मिल पाता है। दूसरी ओर ठेकेदार द्वारा ट्यूबवैल में 160 से 170 किलो वजन के पाइप की जगह मात्र 70-80 किलो वजन का हल्का और घटिया पाइप डालकर बड़ा फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। हल्की क्वालिटी के एमएस पाइप 2-3 साल में ही जंग से खराब हो जाते हैं और ट्यूबवैल खराब हो जाता है। ठेकेदार द्वारा ट्यूबवैल में फाइव स्टार रेटिंग के समर्सिबल पंपसैट और केबल की जगह बिना मार्का के मोटर पंपसैट डाल दिए जाते है, जिसके कारण सालभर बाद ही मोटर पंपसैट खराब हो जाते हैं या जल जाते हैं।
एक ट्यूबवैल में ठेकेदार द्वारा इंजीनियर की मिलीभगत से 1.50 लाख से 2 लाख तक की हेराफेरी की जा रही है। जलदाय विभाग में हर साल हजारों ट्यूबवैल तैयार किए जा रहे हैं, जिनमें ये फर्जीवाड़े का खेल चल रहा है। ठेकेदार इंजीनियर्स की मिलीभगत से ट्यूबवैल निर्माण में एक साल में 40 से 50 करोड़ रूपए का घोटाला कर रहे हैं। जलदाय विभाग के इंजीनियर कमीशन के लालच में घटिया क्वालिटी के ट्यूबवैलों को वेरिफिकेशन में सही ठहराकर ठेकेदारों को करोड़ों रूपए का भुगतान कर रहे हैं।
– मिलीभगत से 18 इंच की जगह 12 से 14 इंच के ट्यूबवैल का निर्माण
जलदाय विभाग में ठेकेदारों द्वारा इंजीनियर्स की मिलीभगत से बड़ा फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। ठेकेदारों द्वारा मिट्टी में रोटरी मशीन से 18 इंच की जगह छोटी बिट लगाकर 12 से 14 इंच के ही ट्यूबवैल का निर्माण किया जा रहा है। छोटी साइट के ट्यूबवैल निर्माण से ठेकेदारों को कई फायदे हो रहे हैं। एक तो ट्यूबवैल का निर्माण जल्दी से हो जाता है, जिससे डीजल और मैनपावर की बचत हो जाती है, दूसरा 12 से 14 इंच के ट्यूबवैल में 8 इंच का एमएस पाइप डालने के बाद पाइपों के साइडों में जगह कम बचती है, जिसमें 2-3 टन रोड़ी से ही काम चल जाता है। इंजीनियर्स की मिलीभगत से छोटी साइट के ट्यूबवैल निर्माण से ठेकेदार को तो मोटा फायदा हो जाता है, लेकिन दूसरी ओर ट्यूबवैल की लाइफ और पानी की आवक घटकर आधी ही रह जाती है। छोटी साइट के ट्यूबवैल निर्माण से ठेकेदार को तो सिर्फ 40-50 हजार का फायदा होता है, लेकिन इसका पूरा खामियाजा क्षेत्र की जनता को पेयजल किल्लत के रूप में उठाना पड़ता है। पानी की आवक कम होने से लोगों को कम पानी मिलता है और दूसरा ट्यूबवैल एक से दो साल बाद ही फेल हो जाता है।
– एक ट्यूबवैल में घटिया एमएस पाइप लगाकर 50 से 60 हजार बचाते हैं ठेकेदार
जलदाय विभाग में ट्यूबवैल निर्माण के दौरान ठेकेदार सबसे ज्यादा हेराफेरी पाइपों में करते हैं। टेंडर शर्तों के अनुसार ठेकेदार को अच्छी क्वालिटी के 150 किलो से ज्यादा वजनी एमएस पाइप डालने होते हैं, लेकिन इंजीनियर्स की मिलीभगत से ठेकेदार सबसे ऊपर के एक पाइप को छोड़कर सभी पाइप 70 से 80 किलो वजन के ही डालते हैं। विभाग के इंजीनियर्स की मिलीभगत के चलते इन पाइपों की न तो सैंपल टेस्टिंग होती है और न ही इनका वजन किया जाता है। दूसरी ओर मिट्टी में पानी की आवक वाले भाग में ठेकेदार को 2 से 3 पाइप स्लाट वाले भी डालने पड़ते हैं। एक एमएस पाइप पर स्लाट बनवाने में ठेकेदार को 3 से 4 हजार रूपए का अतिरिक्त खर्चा आता है, साथ ही समय भी ज्यादा लगता है, ऐसे में ठेकेदार ट्यूबवैलों में कम स्लाट या बिना स्लाट के पाइप डालकर बड़ा फर्जीवाड़ा करते हैं। विभाग के इंजीनियर्स की अनदेखी और मिलीभगत के चलते ठेकेदार एक ट्यूबवैल में घटिया क्वालिटी के पाइप लगाकर 50 से 60 हजार रूपए तक की हेराफेरी कर रहे हैं।
– ट्यूबवैल में 30 हजार की ग्रेवल की जगह 3 हजार की रोड़ी का उपयोग
ट्यूबवैल निर्माण के दौरान पानी की अच्छी आवक के लिए पाइप के चारों ओर की जगह को ग्रेवल से भरना होता है। इस ग्रेवल मिट्टी को आने से रोकती है साथ ही इसमें पानी की आवक आसानी से होती है। यह ग्रेवल राजस्थान में बीकानेर और चंडीगढ़ से आती है। यह ग्रेवल 4 हजार रूपए टन की दर से आती है। एक ट्यूबवैल में 7 से 8 टन ग्रेवल आसानी से लग जाती है। प्रदेश में 95 फीसदी ट्यूबवैलों में ठेकेदार ग्रेवल की जगह सड़क निर्माण में काम आने वाली रोड़ी का उपयोग करते हैं। ट्यूबवैल निर्माण में पैसे बचाने के लिए ठेकेदार ग्रेवल की जगह 2-3 टन रोड़ी से काम चला लेते हैं, जबकि विभाग की ओर से ठेकेदारों को ग्रेवल का भुगतान किया जाता है। एक ट्यूबवैल के निर्माण में ठेकेदार को करीब 30 हजार रूपए की ग्रेवल का खर्चा आता है, लेकिन इस खर्चे से बचने के लिए ठेकेदार इंजीनियर्स की मदद से 3 हजार रूपए की रोड़ी डालकर कर फर्जीवाड़ा कर रहे हैं। ट्यूबवैलों में ग्रेवल की जगह रोड़ी डालने से मिट्टी का पानी नहीं मिलने के कारण ट्यूबवैलों से कम मात्रा में पानी मिल रहा है।
– 5 स्टार की जगह घटिया मोटरपंप सैट व केबल का उपयोग
जलदाय विभाग में ठेकेदारों द्वारा कम चैड़ाई के ट्यूबवैल बनाने, घटिया क्वालिटी के एमएस पाइप डालने, ग्रेवल की जगह रोड़ी का उपयोग करने के साथ ही 5-स्टार की जगह घटिया और बिना आईएसआई मार्का के मोटर पंपसैट, केबल और पैनल बाक्स का उपयोग किया जा रहा है। 5-स्टार रेटिंग के पंपसैट, केबल, पाइप, पैनल बोर्ड लगाने पर ठेकेदार को 80 से 90 हजार रूपए का खर्चा आता है, लेकिन ठेकेदार ट्यूबवैलों में घटिया क्वालिटी के मोटर पंपसैट, केबल, पाइप और पैनल बोर्ड लगाकर 30 से 40 हजार रूपए की हेराफेरी कर रहे हैं। मोटरपंपसैट डालने और केबल की विभाग के इंजीनियर्स द्वारा न तो जांच की जाती है और न ही टेस्टिंग कराई जाती है। ठेकेदार और इंजीनियर्स की मिलीभगत का खामियाजा ये होता है कि मोटरपंप सैट एक-दो साल में ही दम तोड़ जाते हैं।
– क्या एसीएस सुबोध अग्रवाल ट्यूबवैलों में फर्जीवाड़े पर करेंगे कार्रवाई ?
जलदाय विभाग में ठेकेदारों द्वारा कम चैड़ाई के ट्यूबवैल बनाने, घटिया क्वालिटी के एमएस पाइप डालने, ग्रेवल की जगह रोड़ी का उपयोग करने के साथ ही 5-स्टार की जगह घटिया और बिना आईएसआई मार्का के मोटर पंपसैट, केबल और पैनल बाक्स का उपयोग किया जा रहा है। एक ट्यूबवैल के निर्माण में ठेकेदारों द्वारा इंजीनियर्स की मिलीभगत से डेढ़ से दो लाख रूपए का फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। प्रदेश में हर साल हजारों ट्यूबवैलों और हैण्डपंपों का निर्माण हो रहा है, जिनमें ये फर्जीवाड़े का खेल चल रहा है। घटिया क्वालिटी के ट्यूबवैल और हैण्डपंपों के निर्माण के चलते एक-दो साल में ही ये ट्यूबवैल और हैण्डपंप दम तोड़ रहे हैं। जलदाय विभाग में चल रहे इस मिलीभगत के खेल को रोकने और फर्जीवाड़ा करने वालों पर कोई ठोस एक्शन नहीं होने के कारण ठेकेदारों और इंजीनियर्स के हौंसले बुलंद है। क्या जलदाय विभाग एसीएस सुबोध अग्रवाल इस पूरे मामले को गंभीरता से लेंगे और करोड़ों का गबन करने वाले ठेकेदारों और इंजीनियर्स पर कार्रवाई करेंगे या फिर जलदाय विभाग में मिलीभगत का खेल इसी तरह जारी रहेगा ?
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